tag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post1128499257398873780..comments2015-05-13T13:25:28.745-07:00Comments on वीणा मासिक पत्रिक: वीणा पत्रिकावीणाhttp://www.blogger.com/profile/02185321119528921317noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-20419390530077974392015-05-13T13:25:28.745-07:002015-05-13T13:25:28.745-07:00भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगि...भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-16293500742520514332015-05-13T13:25:25.515-07:002015-05-13T13:25:25.515-07:00"गायन्ति देवाः किलगीतिकानि ध्यानास्तुते भारत ..."गायन्ति देवाः किलगीतिकानि ध्यानास्तुते भारत भूमि भागः !<br />स्वर्गापवर्गास्पद हेतु भूतः, भवन्ति भूयः सकला पुरुष्तात !!"<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-50557355611024071442015-05-13T13:25:21.929-07:002015-05-13T13:25:21.929-07:00कहानी
कहानीकार –किशन गोपाल मीना ...कहानी<br /> <br /> कहानीकार –किशन गोपाल मीना ई मेल – kgmeena1@gmail.com<br /><br /> सुमति और कुमति गए गंगा नहाने <br />सुमति एक निर्धन पिता की अनमोल संतान थी ,वह हमेशा अपने माता-पिता से बिना पूछे कहीं भी नहीं जाता था |सदा उनके बताए मार्ग पर चलता और उनके लकड़ी काटने के कार्य में भी हाथ बटाता सदा नीतिमय बाते करता कभी भी मिथ्या नहीं बोलता एक बार जंगल में उसकी भेंट एक गड़रिये से हो गई वह गड़रिया बहुत मीठा बोलता अरे यार मेरी बकरियाँ देखि है क्या सुमति सदा सत्य की रह पर चलने वाला भला कैसे झूँठ भोले अरे भाई मेंने तो नहीं देखा |<br /> कुमति वाचाल था अरे मेरी मदद करो दोस्त इस भयानक जंगल में कहीं मिल जाए |सुमति साधू स्वभाव का था बहकावे में आ गया ठीक है ,कुमति उसको जंगल के रास्ते किसी दूसरे गाँव की और ले गया उसको कहाँ बकरी वह तो उस सुमति को बहकावे में लाकर अपना उल्लू सीधा करना था |रात गहरी हो चली थी कुमति कहता है मित्र में किसी के घर से दो रोटी का जुगाड़ करके आता हूँ ,जब तक आप इस बरगद के पेड़ के नीचे मेरा इंतजार करना |वह बैठा रहा बहुत रात बीत चुकी थी परंतु कुमति आया ही नहीं|सुमति को पिताजी की बाते याद आ गई की कभी भी बिना परखे किसी के संगी मत बनो परंतु सुमति क्या करे घर से भी बिना बताए वह कुमति के साथ चल आया वह दुखी हो रहा था |कुमति ने नगर में राजकुमारी का स्वर्ण हार चुरा लिया ,पूरे नगर में कोहराम मच गया | कुमति कई छुप गया नगर के रक्षक चारों तरफ तहक़ीक़ात में लगे थे |प्रात:भोर की लाल रोशनी धीरे-धीरे तेज हो रही थी |सुमति को चोर समझ कर पकड़ लिया गया |<br />परंतु उसने तो चोरी की नहीं थी माने कौन कुमति घने पेड़ के ऊपर से सब नजारा देख रहा राजा के आदमी सुमति को दंड दे रहे थे परंतु भला वह निर्दोष को तो मालूम ही नहीं था |<br />कुमति का दिल पिघल गया और स्वर्ण हार पेड़ से नीचे गिरा दिया धीरे से नीचे उतर गया और चिल्लाने लगा की अभी चील के मुंह से यह हार गिरा है |हार मिलने से राजकन्या खुश हो गई और सुमति को क्षमा कर दिया |परंतु कुमति को पता चल गया था की बुरे कर्मो का अंत बुरे फल के साथ ही होता है |उसने जीवन में कभी बुरे काम नहीं करने का संकल्प करके मित्र के पैरों में गिर गया राजकुमारी सुमति की सादगी एवं सत्यता देखकर उसे हमसफर बना लिया तथा कुमति अपने मित्र सुमति की संगति से प्रभवित होकर सज्जन तथा परिश्रमी बन गया अत:दोनों खुशी से घर आ गए |इसलिए कहा गया है की में तो गंगा नहा लिया |सुमति की संगति से कुमति भी गंगा नहा आया |<br />कबीर ने ठीक ही कहा है –<br />कबीरा संगत साधु की बेगी करिजे जाय |<br />सुमति देशी बचाय के कुमति दूर गँवाए || <br />तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है –<br />शठ सुधरहि सत संगति पाई |<br />पारस परस कुधातु सुहाई ||<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-52207498179846125432015-05-13T13:25:18.440-07:002015-05-13T13:25:18.440-07:00 माँ का दुलार – ... माँ का दुलार – <br />संसार समाया माँ तेरे चरणों में <br />नसीब वाले आशीष पाए तेरे चरणों में <br />नव मास खिलाया कोंख में <br />हर पल ध्यान रखा हर पीड़ा का <br />खान-पान में लगी बंदिसे अंशी को सुख देने में <br />जग में लाई माँ तू थी निराली <br />हर दुख को भूली देख मेरी प्यारी मूरत <br />धूप सही आपने छाया दी माँ मुझे <br />अंगना तेरा प्यारा जो मिले ना दोबारा <br />अंगुली पकड़ चलना शिखाया <br />गिरते को सभाला हर राह दिखाई <br />फूल से नाजुक समझा मुझे <br />हर दर्द को भूली देख मेरी हंसी <br />जब रोया तो मानो टूटा पहाड़ हिम सा<br />आँचल में छिपाके ममता दूनी लुटाई <br />पहला अक्षर माँ ने सिखाया <br />जग में ज्ञान का झण्डा फहराया <br />हर जीवन में माँ तेरा एहसान <br />चंदा सूरज जैसे अमर निशानी <br />माँ की मधुर ध्वनि कोकिल से प्यारी <br />नवनीत संस्कार दिया वह दुर्गा की अवतारी<br />कवि-किशन गोपाल मीना <br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-10834994060205539342015-05-13T13:25:12.598-07:002015-05-13T13:25:12.598-07:00नमन्ति फलिनो वॄक्षा नमन्ति गुणिनो जना: |
शुष्ककाष्...नमन्ति फलिनो वॄक्षा नमन्ति गुणिनो जना: |<br />शुष्ककाष्ठश्च मूर्खश्च न नमन्ति कदाचन ||<br />दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा |<br />यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते ||<br />वॄश्चिकस्य विषं पॄच्छे मक्षिकाया: मुखे विषम् |<br />तक्षकस्य विषं दन्ते सर्वांगे दुर्जनस्य तत् ||<br />विकॄतिं नैव गच्छन्ति संगदोषेण साधव: |<br />आवेष्टितं महासर्पैश्चंदनं न विषायते ||<br />घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात् कुर्याद्रासभरोहणम् |<br />येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ||<br />प्रदोषे दीपकश्चंद्र: प्रभाते दीपको रवि: |<br />त्रैलोक्ये दीपको धर्म: सुपुत्र: कुलदीपक: ||<br />प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनं |<br />तॄतीये नार्जितं पुण्यं चतुर्थे किं करिष्यति ||<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-29925436097933361912015-05-13T13:25:03.090-07:002015-05-13T13:25:03.090-07:00 भगवान बुद्ध के विचारों की ... भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय से प्रासंगिकता <br /> विचारक-किशन गोपाल मीना टी जी टी संस्कृत केंद्रीय विद्यालय सवाई माधोपुर (राजस्थान)<br />संसार की रचना अदभूत है प्राकृतिक सौंदर्यता विशाल समुद्र ,नीले गगन की असीम सुंदरता ,कल –कल बहते झरने ,ऊंचे-ऊंचे पर्वत ,विविध जीव मानों सृष्टि में तीनों लोकों की मानों सकल चारुता रस घोल दिया हो |विशेष कर मानव कृति के लिए तो सारे गुण ,सुंदरता ,दयालुता ,कारुण्यभाव आदि प्रदान कर मानों देवताओं के साथ भेदभाव किया हो |मानव जीवन इस जगत का सर्वोपरि जीव है देवता भी इस देह के लिए आशा रखते है |<br />तुलसीदासजी ने रामचरित मानस मे लिखा है ------ <br />बड़े भाग मानुष तन पावा | <br />सुर दुर्लभ सब ग्रंथ न गावा ||<br />ईश्वर ने सभी जीवों को बराबर का हक दिया है किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है |इहलोक में सब प्रेम से रहते है |परंतु कुछ मानव ईश्वर की दी हुई शक्ति का दुरुपयोग कर रहे है ,विशेष कर निजी स्वार्थ वश इस जगत में अनर्थ कार्य कर रहे है | जिससे पृथ्वी के अनेक हिस्से विभाजित हो गए वो अलग-अलग देश के नाम से जाने गए है |आज के समय में जाति भेदभाव ,धर्म ,वर्ण आदि को माध्यम बनाकर सम्पूर्ण विश्व में कोहराम मचा हुआ सभी जगत के जीवों में आपसी गहरी खाई बनाने का काम किया जा रहा है जिसको धर्म की रक्षा मानते है |<br />ऐसे व्यक्तियों को भगवान बुद्ध के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए उन्होने समस्त धरातल को एक पिता –माता की संतान की संज्ञा दी थी |शास्त्रों ठीक कहा है ----<br />“उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम “पृथ्वी हि हमारा परिवार है |<br />आज भी बुद्ध के विचार संसार में कीर्तिस्तंभ की तरह जगत के जीवों को आपसी भाई-चारे का संदेश ,अहिंसा,कल्याण ,लोक हित आदि से देदीप्यमान है |भारत में जन्मी इस बोद्दिक विचारधारा से अनेक देश प्रभावित हुए ,जैसे –श्रीलंका ,जापान ,चीन,सिंगापूर आदि अनेक देश बुद्दमय हो गए |विचारों में निर्वाण से भी महानिर्वाण की प्राप्ति जब तक लोभ,स्वार्थ,मोह,निजभाव आदि जीवन के शत्रु है इनसे मुक्ति पाना महानिर्वाण कहा गया है |<br />आज के युग में इनके विचारों से ही जगत में आपसी प्रेम भाईचारा वापिस पुनर्जीवित किया जा सकता है ,क्योंकि भगवान बुद्द के विचार ही जीवन के परम कल्याण की कुंचिका है |आतंकवाद ,नक्सल्वाद ,धार्मिक शत्रुता ,सरहदे ,<br />आदि पीड़ाए भोली निर्दोष प्रजा को आपसी वैमनस्यता में जलाकर राख़ कर रही है |वर्तमान में भगवान बुद्द के जीवन के मुख्य पहलू प्रासंगिक है राजमहल त्याग देना ,निर्वाण प्राप्ति की और आगे अग्रसर होना ,पीड़ितो की सेवा करना |वर्तमान में सभी देश सुख-दुख में एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ,प्राकृतिक आपदा में सहयोग की भावना ,बड़े देश छोटे देशों पर स्वामित्व न जमाए आदि भावनाए हमे पाशविक प्रवृति से बचा सकती है |इस संसार को एकसूत्र में केवल भगवान बुद्द के विचार ही पिरो सकते है | हमें आज सभी को एक संकल्प लेना चाहिए की सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा समाज अथवा परिवार है |<br />स्वयं के विचारों पर आधारित कविता <br />मानवता का अपमान न कर जीवन भर रोएगा |<br />दो दिन का सुख आजीवन शोक भर जाएगा ||<br />धर्म वर्ण जाति की जंजीरे रोक न पाएगी बर्बादी |<br />समरसता संभाव त्याग जगत के है रक्षाकारी || <br /> भगवान बुद्ध के उपदेशों एवं वचनों का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा सम्राट अशोक ने किया। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर अशोक का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात करते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुँचाया। भीमराव आम्बेडकर भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।<br />महात्मा बुद्ध आजीवन सभी नगरों में घूम-घूम कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे। भ्रमण के दौरान जब वे पावा पहुँचे, वहाँ उन्हे अतिसार रोग हो गया था। तद्पश्चात कुशीनगर गये जहाँ 483ई.पू. में बैशाख पूणिर्मा के दिन अमृत आत्मा मानव शरीर को छोङ ब्रहमाण्ड में लीन हो गई। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के उपदेश आज भी देश-विदेश में जनमानस का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। भगवान बुद्ध प्राणी हिंसा के सख्त विरोधी थे। उनका कहना था कि,<br />“जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।“<br />भगवान बुद्ध के विचारों को वर्तमान जीवन में प्रासंगिक बनाए और जीवन को महानता की और ले जाए |<br /><br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-47209286825580783452015-05-13T13:23:55.787-07:002015-05-13T13:23:55.787-07:00गौतम बुद्ध के अनमोल वचन
एक सुराही बूंद-बूंद से भरत...गौतम बुद्ध के अनमोल वचन<br />एक सुराही बूंद-बूंद से भरता है <br />सभी गलत कार्य मन से ही उपजाते हैं | अगर मन परिवर्तित हो जाय तो क्या गलत कार्य रह सकता है |<br /> -गौतम बुद्ध <br /><br />एक निष्ठाहीन और बुरे दोस्त से जानवरों की अपेक्षा ज्यादा भयभीत होना चाहिए ; क्यूंकि एक जंगली जानवर सिर्फ आपके शरीर को घाव दे सकता है, लेकिन एक बुरा दोस्त आपके दिमाग में घाव कर जाएगा. <br />-गौतम बुद्ध <br />एक हजार खोखले शब्दों से एक शब्द बेहतर है जो शांति लता है |<br />-गौतम बुद्ध <br /> <br />अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है| परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो |<br />-गौतम बुद्ध <br />अतीत पर ध्यान केन्द्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करो | <br />-गौतम बुद्ध <br />आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्याङ्कन न करें और न ही दूसरों से ईर्ष्या करें. वे लोग जो दूसरों से ईर्ष्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती |<br />-गौतम बुद्ध <br />चतुराई से जीने वाले लोगों को मौत से भी डरने की जरुरत नहीं है | <br />-गौतम बुद्ध <br />घृणा, घृणा करने से कम नहीं होती, बल्कि प्रेम से घटती है, यही शाश्वत नियम है |<br />-गौतम बुद्ध <br />वह व्यक्ति जो 50 लोगों को प्यार करता है, 50 दुखों से घिरा होता है, जो किसी से भी प्यार नहीं करता है उसे कोई संकट नहीं है |<br />-गौतम बुद्ध <br />स्वास्थ्य सबसे महान उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन तथा विश्वसनीयता सबसे अच्छा संबंध है|<br />-गौतम बुद्ध <br />आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ या बोल लें, लेकिन जब तक उनपर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है |<br />-गौतम बुद्ध <br />मनुष्य का दिमाग ही सब कुछ है, जो वह सोचता है वही वह बनता है |<br />-गौतम बुद्ध <br /><br />जीभ एक तेज चाकू की तरह बिना खून निकाले ही मार देता है |<br />-गौतम बुद्ध <br />सत्य के रस्ते पर कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है, या तो वह पूरा सफ़र तय नहीं करता या सफ़र की शुरुआत ही नहीं करता |<br />-गौतम बुद्ध <br />हजारों दियो को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किये जलाया जा सकता है | ख़ुशी बांटने से ख़ुशी कभी कम नहीं होती |<br />-गौतम बुद्ध<br />तीन चीजों को लम्बी अवधि तक छुपाया नहीं जा सकता, सूर्य, चन्द्रमा और सत्य |<br />-गौतम बुद्ध <br />शारीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्त्तव्य है, नहीं तो हम अपने दिमाग को मजबूत अवं स्वच्छ नहीं रख पाएंगे |<br />-गौतम बुद्ध <br />हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं; हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं| जब मन पवित्र होता है तो ख़ुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है |<br />-गौतम बुद्ध <br />अपने उद्धार के लिए स्वयं कार्य करें. दूसरों पर निर्भर नहीं रहें |<br />-गौतम बुद्ध<br /><br /><br />विचारक-किशन गोपाल मीना (प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक –संस्कृत ) <br />केंद्रीय विद्यालय सवाई माधोपुर राजस्थान -322001 <br />चल दूरभाष -9001535205 <br />ई मेल –kgmeena1@gmal.com<br />संदर्भित सूचिका ----------<br />1.बुद्ध चरितम (अश्वघोष)<br />2. त्रिपिटक संख्या में तीन हैं-<br />1-विनय पिटक, 2-सुत्त पिटक, 3- अभिधम्म पिटक<br />3. भगवान बुद्ध तथा उनका सन्देश-स्वामी विवेकानंद <br />4. "एन एलीमेंट्री स्टडी आफ इस्लाम" मिर्ज़ा ताहिर अहमद<br />5. The Dating of the Historical Buddha: A Review Article<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-20530493115687724022015-05-13T13:23:20.893-07:002015-05-13T13:23:20.893-07:00गौतम बुद्ध जैसा कोई नहीं उनके विचार अनोखे साफ़ और न...गौतम बुद्ध जैसा कोई नहीं उनके विचार अनोखे साफ़ और निराले हैं…<br />बुद्ध ने कहा हैः मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बँध मत जाना। तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ, तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो, इसकी सूचना हूँ। तुम मुझे सम्मान दो, तो यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है, लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना। क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले तो बुद्ध कैसे हो पाओगे? बुद्धत्व तो खुली आँखों से उपलब्ध होता है, बंद आँखों से नहीं। और बुद्धत्व तो तभी उपलब्ध होता है, जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो।<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-42287140877482661432015-05-13T13:22:18.500-07:002015-05-13T13:22:18.500-07:00 भगवान बुद्ध के विचारों की ... भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय से प्रासंगिकता <br /> विचारक-किशन गोपाल मीना टी जी टी संस्कृत केंद्रीय विद्यालय सवाई माधोपुर (राजस्थान)<br />संसार की रचना अदभूत है प्राकृतिक सौंदर्यता विशाल समुद्र ,नीले गगन की असीम सुंदरता ,कल –कल बहते झरने ,ऊंचे-ऊंचे पर्वत ,विविध जीव मानों सृष्टि में तीनों लोकों की मानों सकल चारुता रस घोल दिया हो |विशेष कर मानव कृति के लिए तो सारे गुण ,सुंदरता ,दयालुता ,कारुण्यभाव आदि प्रदान कर मानों देवताओं के साथ भेदभाव किया हो |मानव जीवन इस जगत का सर्वोपरि जीव है देवता भी इस देह के लिए आशा रखते है |<br />तुलसीदासजी ने रामचरित मानस मे लिखा है ------ <br />बड़े भाग मानुष तन पावा | <br />सुर दुर्लभ सब ग्रंथ न गावा ||<br />ईश्वर ने सभी जीवों को बराबर का हक दिया है किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है |इहलोक में सब प्रेम से रहते है |परंतु कुछ मानव ईश्वर की दी हुई शक्ति का दुरुपयोग कर रहे है ,विशेष कर निजी स्वार्थ वश इस जगत में अनर्थ कार्य कर रहे है | जिससे पृथ्वी के अनेक हिस्से विभाजित हो गए वो अलग-अलग देश के नाम से जाने गए है |आज के समय में जाति भेदभाव ,धर्म ,वर्ण आदि को माध्यम बनाकर सम्पूर्ण विश्व में कोहराम मचा हुआ सभी जगत के जीवों में आपसी गहरी खाई बनाने का काम किया जा रहा है जिसको धर्म की रक्षा मानते है |<br />ऐसे व्यक्तियों को भगवान बुद्ध के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए उन्होने समस्त धरातल को एक पिता –माता की संतान की संज्ञा दी थी |शास्त्रों ठीक कहा है ----<br />“उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम “पृथ्वी हि हमारा परिवार है |<br />आज भी बुद्ध के विचार संसार में कीर्तिस्तंभ की तरह जगत के जीवों को आपसी भाई-चारे का संदेश ,अहिंसा,कल्याण ,लोक हित आदि से देदीप्यमान है |भारत में जन्मी इस बोद्दिक विचारधारा से अनेक देश प्रभावित हुए ,जैसे –श्रीलंका ,जापान ,चीन,सिंगापूर आदि अनेक देश बुद्दमय हो गए |विचारों में निर्वाण से भी महानिर्वाण की प्राप्ति जब तक लोभ,स्वार्थ,मोह,निजभाव आदि जीवन के शत्रु है इनसे मुक्ति पाना महानिर्वाण कहा गया है |<br />आज के युग में इनके विचारों से ही जगत में आपसी प्रेम भाईचारा वापिस पुनर्जीवित किया जा सकता है ,क्योंकि भगवान बुद्द के विचार ही जीवन के परम कल्याण की कुंचिका है |आतंकवाद ,नक्सल्वाद ,धार्मिक शत्रुता ,सरहदे ,<br />आदि पीड़ाए भोली निर्दोष प्रजा को आपसी वैमनस्यता में जलाकर राख़ कर रही है |वर्तमान में भगवान बुद्द के जीवन के मुख्य पहलू प्रासंगिक है राजमहल त्याग देना ,निर्वाण प्राप्ति की और आगे अग्रसर होना ,पीड़ितो की सेवा करना |वर्तमान में सभी देश सुख-दुख में एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ,प्राकृतिक आपदा में सहयोग की भावना ,बड़े देश छोटे देशों पर स्वामित्व न जमाए आदि भावनाए हमे पाशविक प्रवृति से बचा सकती है |इस संसार को एकसूत्र में केवल भगवान बुद्द के विचार ही पिरो सकते है | हमें आज सभी को एक संकल्प लेना चाहिए की सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा समाज अथवा परिवार है |<br />स्वयं के विचारों पर आधारित कविता <br />मानवता का अपमान न कर जीवन भर रोएगा |<br />दो दिन का सुख आजीवन शोक भर जाएगा ||<br />धर्म वर्ण जाति की जंजीरे रोक न पाएगी बर्बादी |<br />समरसता संभाव त्याग जगत के है रक्षाकारी || <br /> भगवान बुद्ध के उपदेशों एवं वचनों का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा सम्राट अशोक ने किया। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर अशोक का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात करते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुँचाया। भीमराव आम्बेडकर भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।<br />महात्मा बुद्ध आजीवन सभी नगरों में घूम-घूम कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे। भ्रमण के दौरान जब वे पावा पहुँचे, वहाँ उन्हे अतिसार रोग हो गया था। तद्पश्चात कुशीनगर गये जहाँ 483ई.पू. में बैशाख पूणिर्मा के दिन अमृत आत्मा मानव शरीर को छोङ ब्रहमाण्ड में लीन हो गई। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के उपदेश आज भी देश-विदेश में जनमानस का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। भगवान बुद्ध प्राणी हिंसा के सख्त विरोधी थे। उनका कहना था कि,<br />“जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।“<br />भगवान बुद्ध के विचारों को वर्तमान जीवन में प्रासंगिक बनाए और जीवन को महानता की और ले जाए |<br /><br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-82090358027714143022015-05-13T13:18:38.772-07:002015-05-13T13:18:38.772-07:00नमन्ति फलिनो वॄक्षा नमन्ति गुणिनो जना: |
शुष्ककाष्...नमन्ति फलिनो वॄक्षा नमन्ति गुणिनो जना: |<br />शुष्ककाष्ठश्च मूर्खश्च न नमन्ति कदाचन ||<br />दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा |<br />यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते ||<br />वॄश्चिकस्य विषं पॄच्छे मक्षिकाया: मुखे विषम् |<br />तक्षकस्य विषं दन्ते सर्वांगे दुर्जनस्य तत् ||<br />विकॄतिं नैव गच्छन्ति संगदोषेण साधव: |<br />आवेष्टितं महासर्पैश्चंदनं न विषायते ||<br />घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात् कुर्याद्रासभरोहणम् |<br />येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ||<br />प्रदोषे दीपकश्चंद्र: प्रभाते दीपको रवि: |<br />त्रैलोक्ये दीपको धर्म: सुपुत्र: कुलदीपक: ||<br />प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनं |<br />तॄतीये नार्जितं पुण्यं चतुर्थे किं करिष्यति ||<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-66207017476133842602015-05-13T13:17:45.978-07:002015-05-13T13:17:45.978-07:00 माँ का दुलार – ... माँ का दुलार – <br />संसार समाया माँ तेरे चरणों में <br />नसीब वाले आशीष पाए तेरे चरणों में <br />नव मास खिलाया कोंख में <br />हर पल ध्यान रखा हर पीड़ा का <br />खान-पान में लगी बंदिसे अंशी को सुख देने में <br />जग में लाई माँ तू थी निराली <br />हर दुख को भूली देख मेरी प्यारी मूरत <br />धूप सही आपने छाया दी माँ मुझे <br />अंगना तेरा प्यारा जो मिले ना दोबारा <br />अंगुली पकड़ चलना शिखाया <br />गिरते को सभाला हर राह दिखाई <br />फूल से नाजुक समझा मुझे <br />हर दर्द को भूली देख मेरी हंसी <br />जब रोया तो मानो टूटा पहाड़ हिम सा<br />आँचल में छिपाके ममता दूनी लुटाई <br />पहला अक्षर माँ ने सिखाया <br />जग में ज्ञान का झण्डा फहराया <br />हर जीवन में माँ तेरा एहसान <br />चंदा सूरज जैसे अमर निशानी <br />माँ की मधुर ध्वनि कोकिल से प्यारी <br />नवनीत संस्कार दिया वह दुर्गा की अवतारी<br />कवि-किशन गोपाल मीना <br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-63955610336325004682015-05-13T13:17:00.160-07:002015-05-13T13:17:00.160-07:00कहानी
कहानीकार –किशन गोपाल मीना ...कहानी<br /> <br /> कहानीकार –किशन गोपाल मीना ई मेल – kgmeena1@gmail.com<br /><br /> सुमति और कुमति गए गंगा नहाने <br />सुमति एक निर्धन पिता की अनमोल संतान थी ,वह हमेशा अपने माता-पिता से बिना पूछे कहीं भी नहीं जाता था |सदा उनके बताए मार्ग पर चलता और उनके लकड़ी काटने के कार्य में भी हाथ बटाता सदा नीतिमय बाते करता कभी भी मिथ्या नहीं बोलता एक बार जंगल में उसकी भेंट एक गड़रिये से हो गई वह गड़रिया बहुत मीठा बोलता अरे यार मेरी बकरियाँ देखि है क्या सुमति सदा सत्य की रह पर चलने वाला भला कैसे झूँठ भोले अरे भाई मेंने तो नहीं देखा |<br /> कुमति वाचाल था अरे मेरी मदद करो दोस्त इस भयानक जंगल में कहीं मिल जाए |सुमति साधू स्वभाव का था बहकावे में आ गया ठीक है ,कुमति उसको जंगल के रास्ते किसी दूसरे गाँव की और ले गया उसको कहाँ बकरी वह तो उस सुमति को बहकावे में लाकर अपना उल्लू सीधा करना था |रात गहरी हो चली थी कुमति कहता है मित्र में किसी के घर से दो रोटी का जुगाड़ करके आता हूँ ,जब तक आप इस बरगद के पेड़ के नीचे मेरा इंतजार करना |वह बैठा रहा बहुत रात बीत चुकी थी परंतु कुमति आया ही नहीं|सुमति को पिताजी की बाते याद आ गई की कभी भी बिना परखे किसी के संगी मत बनो परंतु सुमति क्या करे घर से भी बिना बताए वह कुमति के साथ चल आया वह दुखी हो रहा था |कुमति ने नगर में राजकुमारी का स्वर्ण हार चुरा लिया ,पूरे नगर में कोहराम मच गया | कुमति कई छुप गया नगर के रक्षक चारों तरफ तहक़ीक़ात में लगे थे |प्रात:भोर की लाल रोशनी धीरे-धीरे तेज हो रही थी |सुमति को चोर समझ कर पकड़ लिया गया |<br />परंतु उसने तो चोरी की नहीं थी माने कौन कुमति घने पेड़ के ऊपर से सब नजारा देख रहा राजा के आदमी सुमति को दंड दे रहे थे परंतु भला वह निर्दोष को तो मालूम ही नहीं था |<br />कुमति का दिल पिघल गया और स्वर्ण हार पेड़ से नीचे गिरा दिया धीरे से नीचे उतर गया और चिल्लाने लगा की अभी चील के मुंह से यह हार गिरा है |हार मिलने से राजकन्या खुश हो गई और सुमति को क्षमा कर दिया |परंतु कुमति को पता चल गया था की बुरे कर्मो का अंत बुरे फल के साथ ही होता है |उसने जीवन में कभी बुरे काम नहीं करने का संकल्प करके मित्र के पैरों में गिर गया राजकुमारी सुमति की सादगी एवं सत्यता देखकर उसे हमसफर बना लिया तथा कुमति अपने मित्र सुमति की संगति से प्रभवित होकर सज्जन तथा परिश्रमी बन गया अत:दोनों खुशी से घर आ गए |इसलिए कहा गया है की में तो गंगा नहा लिया |सुमति की संगति से कुमति भी गंगा नहा आया |<br />कबीर ने ठीक ही कहा है –<br />कबीरा संगत साधु की बेगी करिजे जाय |<br />सुमति देशी बचाय के कुमति दूर गँवाए || <br />तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है –<br />शठ सुधरहि सत संगति पाई |<br />पारस परस कुधातु सुहाई ||<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-89786644372035580442015-05-13T13:16:18.498-07:002015-05-13T13:16:18.498-07:00"गायन्ति देवाः किलगीतिकानि ध्यानास्तुते भारत ..."गायन्ति देवाः किलगीतिकानि ध्यानास्तुते भारत भूमि भागः !<br />स्वर्गापवर्गास्पद हेतु भूतः, भवन्ति भूयः सकला पुरुष्तात !!"<br />kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-13091270263807936352015-05-13T13:15:11.034-07:002015-05-13T13:15:11.034-07:00भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगि...भगवान बुद्ध के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता kishan gopal meenahttps://www.blogger.com/profile/02124683685648642642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3755105738608989581.post-47721565424817832032011-09-03T02:07:55.318-07:002011-09-03T02:07:55.318-07:00श्रीमानजी
मध्य भारत की मुख्या भाषा "मालवी &q...श्रीमानजी <br />मध्य भारत की मुख्या भाषा "मालवी "को कोई स्थान नि हे एक सारु वीणा में अलग से पन्नो फिक्स करो में अपनी सेवा देने सरू तैयार हु |<br />मालवी के जन जन में फिर से उनाज मुकाम पे लानो हे <br />-- <br />राजेश भंडारी "बाबु"<br />१०४, महावीर नगर इंदौर <br />मोबाइल 9009502734RAJESH BHANDARIhttps://www.blogger.com/profile/14465817178270097043noreply@blogger.com